कस्तूरबा मैम ने मिथिला में पढ़ने का आत्मविश्वास जगाया।
एक समय की बात है, रावल नाम के शहर में, मिथिला नाम की एक प्यारी सी लड़की थी। वह अपने दादा-दादी के साथ एक छोटे से घर में रहती थी। वह दिल की बड़ी ही नेक और समझदार थी। वह हर काम पूरी निष्ठा और लगन से करती लेकिन बस एक ही काम था जिसमें वह पीछे थी, और वह था पढ़ाई।
मिथिला जितने भी प्रयास करती सब बेकार जाते। पाँचवी कक्षा तक भी वह बड़े संघर्ष के साथ पहुँच पायी थी। उसने पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करने के बहुत प्रयत्न किए है लेकिन पता नहीं परीक्षाओं के समय वह याद किया हुआ सब-कुछ भूल जाती थी। उसको पाँचवी कक्षा उत्तीर्ण करने की हर समय चिंता लगी रहती थी।
एक दिन, कक्षा में कस्तूरबा मैम ने एक सवाल पूछा, “बताओ बच्चो, पेड़ पौधे फोटोसिन्थेसिस के समय कौनसी गैस का प्रयोग करते है”।
इस पर कई विद्यार्थियों ने उत्तर देने के लिए अपने हाथ खड़े किए। कस्तूरबा मैम बहुत दिनों से अनुभव कर रही थीं कि जब भी वह कोई प्रश्न पूछती, मिथिला उनकी निगाहों से बचने की कोशिश करती रहती। इसलिए आज मैम ने उसे ही जवाब देने को कहा। मिथिला डर गयी।
उसने हिचकिचाते हुए कहा, “ऑक्सिजन?”
इस पर कक्षा के सब छात्र उस पर हँसने लगे। मिथिला घबराकर काँपने लगी।
मैम ने हँस रहे बच्चों को डाँटते हुए चुप कराया और मिथिला को समझाया, “मनुष्य और जानवर ऑक्सिजन से सांस लेते है और कार्बन डाइऑक्साइड वायु में छोड़ते है। अब यदि पेड़ पौधे भी ऑक्सिजन से ही सांस लेंगे तो इतने सारा ऑक्सिजन हवा में कहाँ से आएगा? इसलिए प्रकृति ने इस सृष्टि को इस तरह बनाया है कि मानव और पशु-पक्षी तो ऑक्सिजन से श्वांस लेते हैं और फिर जब वे कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकलते है तो उस कार्बनडाईऑक्साइड से वृक्ष सांस लेते है और ऑक्सिजन हवा में प्रवाहित कर देते हैं।
यह प्रक्रिय चलती रहती है। इस प्रकार इस प्रश्न सही उत्तर है कार्बन डाइऑक्साइड। अब समझ में आया मिथिला?”
मिथिला ने छोटी सी मुस्कान के साथ हाँ में अपना सिर हिला दिया।
कक्षा जब समाप्त होगई तब कस्तूरबा मैम ने अलग से मिथिला को अपने पास बुलाकर पूछा, “क्या बात है मिथिला, यदि तुम्हें किसी भी विषय में कोई कठिनाई आती है तो तुम बेझिझक मुझसे पूंछ लिया करो। मैंने जो आज की कक्षा में समझाया वह समझ में तो आगया न तुम्हें?” मिथिला ने मैम को आश्वासन देते हुए धन्यवाद दिया।
अगले दिन जब मैम ने कक्षा में आकर पढ़ाना शुरू किया। फिरसे उन्होनें कुछ साधारण से सवाल कक्षा में छात्रों से पूछे तो आज भी उन्होनें देखा कि मिथिला फिरसे प्रश्नों से बचने का प्रयास कर रही थी। मैम को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उन्होनें अपने सहअध्यापकों से मिथिला के बारे में पूछा तो सबका यही कहना था कि वह पढ़ाई को छोड़कर सब क्षेत्रों में अच्छी है और वह पढ़ाई में मेहनत भी करती है पर पता नहीं क्यूँ उसका प्रदर्शन हर बार खराब ही रहता है। इस पर कस्तूरबा मैम को अचंभा हुआ।
उन्होनें अगले ही दिन, मिथिला को विद्यालय के बाद एक घंटा रुक कर उनसे पढ़ने को कहा। कुछ दिन मिथिला को पढ़ाने के बाद कस्तूरबा मैम ने जाना कि मिथिला विषयों को समझने की जगह उन्हें रटने का अधिक प्रयास करती। उसमें आत्मविश्वास की भी बहुत कमी थी।
मैम से लगभग पाँच महीने पढ़ने के बाद उसका आत्मविश्वास धीरे-धीरे बढ़ता चला गया। अब उसने चीजों को रटना भी कम कर दिया था।
विद्यालय की परीक्षाएँ आरंभ हुई और अब परिणाम का दिन भी आ गया। यूँ तो मिथिला को परिणामों की चिंता थी लेकिन उसे अपने ऊपर भरोसा भी था।
जब परिणाम आए तो उसने देखा कि वह इस बार बस उत्तीर्ण ही नहीं बल्कि अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुई थी। वह तुरंत कस्तूरबा मैम को धन्यवाद देने गयी और उनके गले से लग गयी।
मैम ने उसको आशीर्वाद देते हुए कहा, “अब हर बार ऐसे ही अच्छे अंक लाने है तुम्हें”।
मिथिला ने खिलखिलाते हुए कहाँ, “जी पक्का”।
मिथिला को उस वर्ष पढ़ाई में बेहतर होने के लिए विद्यालय में पुरस्कार भी मिला। तब से मिथिला के जीवन में पढ़ाई से संबन्धित कोई समस्या न आई। उसका आत्म विश्वास अब इतना प्रबल हो गया था कि उसने हर परीक्षा सफलता पूर्वक उत्तीर्ण की और वह बड़े होकर एक कामयाब जज बनी।
शब्दार्थ:
- उत्तीर्ण – किसी परीक्षा में सफ़ल
- प्रबल – शक्तिशाली