चित्रांगदा एक नयी दोस्त बनती है, जलपरी रूही, जो उसकी मदद करती है।
चित्रांगदा किशनगढ़ के राजा विक्रम सिंह की बेटी थी। घुड़सवारी, तीरंदाज़ी, तैरना और तरह-तरह की कलायें सीखते हुये लाड़ प्यार से बड़ी हो रही थी। लेकिन उसे तैरना सबसे अच्छा लगता। राजा-रानी, अर्थात उसके मम्मी-पापा, को यह बिलकुल नहीं पसंद था कि वह बाहर नदी में तैरने जाये। लेकिन चित्रांगदा के लिये महल की चारदीवारी से बाहर जाने के लिये एक अच्छा बहाना था।
एक दिन चुपके से, बिना किसी को बताये, वह नदी की तरफ चली गयी। कुछ देर बाद लहरें तेज़ हो गयी, जिस कारण वह संतुलन खो बैठी। उसने शोर भी मचाया, लेकिन आस-पास कोई भी नहीं था जो उसे बचा सके। थोड़ी देर बाद वह बेहोश हो गयी।
जब उसे होश आया तो उसने अपने आप को एक सुंदर से कमरे में पाया। उस कमरे में जलपरियाँ थी, जिनका आधा हिस्सा मछलियों जैसा था। चित्रांगदा को पता नहीं चल पा रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा है?
थोड़ी देर बाद सब बाहर चले गये। खिड़की से बाहर देखने पर उसे चारों तरफ पानी ही पानी दिखाई दे रहा था। जेलीफिश, स्टारफ़िश, रंग-बिरंगी मछलियाँ एवं नीचे खूब सारे मोती बिखरे हुये थे। उसे यह सब अच्छा तो लग रहा था लेकिन वह इस नयी जगह पर आ कर आश्चर्यचकित थी।
तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आयी। एक सुंदर सी रानी जलपरी, जिसके सिर पर मुकुट था, चित्रांगदा के पास आकर बोली, “तुम हमारी मेहमान हो”। वह उसे पूरी कहानी भी बताती है कि वह यहाँ कैसे पहुँची।
चित्रांगदा को नदी के अंदर की दुनिया देखकर थोड़ा अजीब सा लग रहा था क्योंकि वह अपने मम्मी-पापा के पास जाना चाहती थी।
उधर किशनगढ़ के राजा विक्रम सिंह ने लोगों को चारों तरफ चित्रांगदा को ढूँढने के लिये भेजा, पर वे सब ख़ाली हाथ वापिस लौट आये।
कुछ दिन बीतने के बाद चित्रांगदा जलपरी रानी से कहती है, “मुझे अपने घर जाना है”।
यह सुनकर रानी बोलती है, “यहाँ का नियम है कि एक बार जब कोई आ जाता है तो हम उसको जाने नहीं देते”।
इतना सुनते ही चित्रांगदा रोने लगती है। रानी को यह देखकर बुरा तो बहुत लगा लेकिन वह कुछ कर नहीं सकती थी। जलपरी रानी की बेटी रूही से चित्रांगदा की दोस्ती हो जाती है। रूही को उसके दुख के बारे में जब पता चलता है तो वह चित्रांगदा की मदद करना चाहती है।
इसलिये एक दिन वह चित्रांगदा से कहती है, “कल यहाँ से सभी लोग दो दिन के लिये दूर कहीं किसी दूसरे राज्य में उत्सव में जा रहे है। तुम तैयार रहना। मैं तुम्हें अपने साथ ले जा कर बाहर निकाल दूँगी”।
रूही उसके लिये मछली जैसे आकार की एक ड्रेस तैयार करके, सभी के जाने के बाद ड्रेस को उसके पीछे बाँध देती है। वह उसे बिलकुल जलपरी जैसा बना देती है, जिससे किसी को शक न हो। रूही उससे एक वादा लेती है कि इस जल की दुनिया के बारे में तुम किसी को नहीं बताओगी। अगर बाहर के लोगों को इस दुनिया के बारे मे पता चल गया, तो वे हमें नुक़सान पहुँचा सकते है। फिर चित्रांगदा की समझ में आया कि यहाँ से बाहर न भेजने का नियम क्यों बनाया हुआ है।
रूही सुबह जल्दी से उठकर चित्रांगदा को जगाती है। वह उसे अपने साथ लेकर बाहर जाने वाले रास्ते में जैसे ही आगे जाती है, एक द्वारपाल उन्हें देख लेता है। लेकिन चित्रांगदा को पहचान नहीं पाता, क्योंकि वह बिलकुल जलपरी जैसी जो लग रही थी। रूही उसका हाथ पकड़कर एक गुप्त रास्ते से उसे बाहर की तरफ ले जाती है।
नदी के ऊपर आते ही चित्रागंदा का ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता है। लेकिन इसके साथ-साथ रूही से बिछुड़ने का दुख भी हो रहा होता है। जब रूही उससे विदा लेती है तो उसे ढेर सारे मोती उपहार में देती है। वे दोनों वादा करते है कि महीने में एक बार ज़रूर मिला करेंगे।
रूही उसे बताती है, “जब कोई धोखे से तुम्हारे जैसे लोग हमारे राज्य में आते है तो हम उन्हे वापस इसलिये नहीं जाने जाते क्योंकि बाहर निकल कर वे हमारे बारे में लोगों को बताकर एक ख़तरा पैदा कर सकते है”।
चित्रांगदा उससे कहती है, “रूही तुम बिलकुल चिंता मत करो। मैं इस जल की दुनिया के बारे में किसी को भी नहीं बताऊँगी”।
फिर वह रूही से विदा लेकर अपने मम्मी-पापा के पास महल चली जाती है। उसे देखकर राजा-रानी बहुत खुश होते है और वे सभी प्रजा के साथ मिलकर फिर जश्न भी मनाते है।
शब्दार्थ:
- चारदीवारी – किसी मकान या स्थान के चारों ओर बनाई जाने वाली ऊँची दीवार
- संतुलन खोना – सीधे खड़े न रह पाना